Mata Brahmacharini Katha | माता ब्रह्मचारिणी- माँ दुर्गा के दूसरे रूप की कथा
माँ दुर्गा के नौ रूपों में दूसरा रूप माता ब्रह्मचारिणी का हैं | मां का ये रूप तपस्विनी का है | ब्रह्मचारिणी का अर्थ होता है, तप का आचरण करने वाली | इनका स्वरूप अत्यंत तेजमय और भव्य है |
मां ब्रह्मचारिणी अपने दाहिने हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमंडल धारण करती हैं और श्वेत वस्त्र पहनती हैं| नवरात्रि के दूसरे दिन इनकी पूजा की जाती हैं | इनकी पूजा के दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित होता है |
माँ का यह स्वरुप हमे हठयोग की प्रेरणा देता है, इनकी उपासना से हमे तप, त्याग, वैराग्य, संयम व धैर्य की प्राप्ति होती है |
शास्त्रों के अनुसार देवी ब्रह्मचारिणी, मंगल ग्रह की शासक हैं। वह भाग्य की दाता है और वह अपने भक्तों के सभी दुखों को दूर करती है। मंगल दोष और कुंडली में मंगल की प्रतिकूल स्थिति से उत्पन्न समस्याओं को दूर करने के लिए ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा की जाती है | आइए अब जानते हैं मां ब्रह्मचारिणी देवी की कथा :-
मां ब्रह्मचारिणी की कथा
मां ब्रह्मचारिणी ने अपने पूर्व जन्म में राजा हिमालय के घर में पुत्री रूप में जन्म लिया था | देवर्षि नारद के कहने पर माता ब्रम्हचारिणी शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए जंगल में जाकर हजारों वर्ष केवल फल खाकर कठिन तपस्या की। पुनः शिव को विशेष प्रसन्न करने के लिए ब्रह्मचारिणी ने 3000 वर्ष तक वृक्षों से गिरे सूखे पत्तों को खाकर कठिन तपस्या की। इस दुष्कर तपस्या के कारण इन्हें तपस्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से जाना जाता हैं |
मैना मां हो गईं दुखी
कई हज़ार वर्षों की इस कठिन तपस्या के कारण ब्रह्मचारिणी देवी का शरीर एकदम क्षीण हो उठा, उनकी यह दशा देखकर उनकी माता मैना अत्यंत दुखी हुई और उन्होंने उन्हें इस कठिन तपस्या से विरक्त करने के लिए आवाज़ दी उ…मां… तब से देवी ब्रह्मचारिणी का एक नाम उमा भी पड़ गया | उनकी इस तपस्या से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया | देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी देवी ब्रह्मचारिणी की इस तपस्या को अभूतपूर्व पुण्यकृत्य बताते हुए उनकी सराहना करने लगे |
अंत में पितामह ब्रह्माजी ने आकाशवाणी के द्वारा उन्हें संबोधित करते हुए प्रसन्न स्वर में कहा- देवी! आज तक किसी ने ऐसी कठोर तपस्या नहीं की जैसी तुमने की है | तुम्हारे इस कृत्य की चारों ओर सराहना हो रही हैं | तुम्हारी मनोकामना सर्वतोभावेन परिपूर्ण होगी | भगवान शंकर जी तुम्हे पति रूप में अवश्य प्राप्त होंगे | अब तुम तपस्या से विरत होकर घर लौट जाओ शीघ्र ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं | इसके बाद माता घर लौट आई और कुछ दिनों बाद ब्रह्माजी के लेख के अनुसार उनका विवाह महादेव शिव शंकर के साथ हो गया |